– डॉ. भूपेन्द्र विश्रोई ने सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखकर नौकरी को छोड़ते हुए पिता के साथ काम करने की बात कही
सांचौर.
सांचौर की राजनीति में एक बार फिर परिवारवाद की एंट्री हो चुकी हैं। लेकिन, इतिहास रहा हैं कि कांग्रेस व भाजपा दोनों पार्टियों में सांचौर की राजनीति में परिवार के सदस्य राजनीति करकें अब तक सफल नहीं हो पाये हैं। इधर, वर्तमान सांचौर विधायक व राज्य सरकार में मंत्री सुखराम विश्रोई के पुत्र डॉ. भूपेन्द्र विश्रोई ने डॉक्टर की नौकरी छोडऩे की बात कहकर राजनीति में आने की घोषणा की हैं। यह घोषणा उन्होंने खुद सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर की। सांचौर कांग्रेस में यह दूसरा मौका हैं कि पिता विधायक होने के साथ-साथ पुत्र ने भी राजनीति में आगे का भविष्य बनाने के लिए तैयारी शुरू की हैं। इससे पहले पूर्व विधायक रहे स्व. रघुनाथ विश्रोई के पुत्र ने भी पिता विधायक होने के साथ ही सक्रियता दिखाई थी, हालांकि एक बार प्रधान जरूर बनें, लेकिन आगे की राजनीति में फिर ज्यादा सफल नजर अब तक नहीं आ पाये हैं। अब पिता विधायक होने के बाद भी डॉ. भूपेन्द्र विश्रोई ने इस राजनीतिक में आने की घोषणा कर दी हैं, लेकिन कितने सफल होते हैं, यह समय बता पायेंगा।
लक्ष्मीचंद मेहता के निधन के बाद पुत्र की राजनीति एंट्री, चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे
सांचौर के दो बार विधायक रह चुके लक्ष्मीचंद मेहता का निधन होने के बाद उनके पुत्र मिलापचंद मेहता ने भी राजनीति में एंट्री की थी। 2008 के दौरान भाजपा से जीवाराम चौधरी का टिकट कटवाकर मेहता ले आए। जीवाराम चौधरी उनके सामने निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए जीत गए, जबकि मिलापचंद मेहता तीसरे नंबर पर रहे।
इनके बेटे भी सक्रिय रहे, लेकिन ज्यादा प्रभाव नहीं दिखा पाए
सांचौर विधानसभा इतिहास में सबसे अधिक 5 बार विधायक रहने वाले स्व. रघुनाथ विश्रोई के पुत्र नरेन्द्र विश्रोई ने भी राजनीति में एंट्री की थी, उनको एक बार प्रधान बनने का जरूर मौका मिला था। लेकिन उसके बाद ज्यादा राजनीति में अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए। हीरालाल विश्रोई भी दो बार विधायक रहे। विधायक रहते उनके बेटे राजनीति में नहीं आए। उसके बाद पिता व पुत्र दोनों ने संगठन में एक साथ कार्य किया।
कांग्रेस की सरकार के खिलाफ भी धरने पर बैठ चुके हैं डॉ. विश्रोई
डॉ. भूपेन्द्र विश्रोई अपने पिता के विभाग के साथ-साथ राज्य में प्रदेश की कांग्रेस सरकार के खिलाफ भी धरने पर बैठ चुके हैं। बाड़मेर में हिरण शिकार को लेकर धरने पर बैठे थे, जबकि वन विभाग का जिम्मा उनके पिता के पास हैं। वहीं कुछ समय पहले झाब थाने के आगे भी धरने पर बैठे थे।