जहाज मंदिर का निर्माण कराने के पीछे यह रही साेच : मुंबई में चातुर्मास के दौरान उन्होंने तारण-तीरण जहाज का प्रसंग सुना।
यानी, जहाज सबको तार कर पानी से बाहर लाता है। तभी उनके मन में जहाज के आकार का मंदिर बनाने का विचार आया
जिनकांति सूरी सागर मसा की स्मृति में उनके शिष्य मणिप्रभ सागर मसा ने बनवाया मांडवला का यह जैन मंदिर
5 साल 8 माह में बना मांडवला का जहाज मंदिर, गुरु–शिष्य के रिश्ते का है साक्षी
ये है जालोर से करीब 18 किलोमीटर दूर मांडवला स्थित जैन समाज का जहाज मंदिर। इसकी खासियत यह है कि देश का यह इकलौता मंदिर है जो जहाज की अाकृति में बना है। संगमरमर के जहाज में बने इस मंदिर को कांच, हीरा–पन्ना, मोती और सोने से बनाया गया है। इसीलिए इसकी भव्यता देखते ही बनती है। देश ही नहीं, विदेश से भी पर्यटक इसके दर्शनार्थ आते हैं। इस मंदिर की स्थापना के पीछे की कहानी भी गुरु–शिष्य के रिश्ते की महत्वता को दर्शाती है। मंदिर की देखरेख के लिए जिनकांति सागर सूरीश्वर महाराज स्मारक ट्रस्ट है। जिनकांति सूरी सागर का देहावसान 4 दिसंबर 1985 को हुआ था। उनके शिष्य मणिप्रभ सागर मसा उनकी स्मृति में स्मारक बनवाना चाहते थे। मुंबई में चातुर्मास के दौरान उन्होंने तारण–तीरण जहाज सुना। जैसे जहाज सबको तार कर पानी से बाहर लाता है। ऐसे ही जहाज के आकार का मंदिर बनाने का विचार आया और 9 मई 1993 को मांडवला में मंदिर का शिलान्यास किया। 30 जनवरी 1999 को जहाज के आकार में मंदिर बन गया। ट्रस्ट के महामंत्री डॉ.यूसी जैन ने बताया कि यहां 24 तीर्थंकर का र| मदिर है। र|ों से जैन धर्म के सभी तीर्थंकरों की प्रतिमाएंं बनवाई गई है, जो हीरा–पन्ना, मोती, जवाहरात, माणक आदि से बनी हैं।
जालोर. शहर से 18 किमी. दूर मांडवला कस्बे में बना जहाज मंदिर।
नक्काशी के लिए सिराेही के साेमपुरा, तो कांच की कलाकारी के लिए किशनगढ़ से कारीगर आए
ट्रस्ट के प्रबंधक नरेश जैन बताया कि मुंबई से ही नक्शे के लिए इंजीनियर आए। इसके बाद निर्माण के लिए कुशल कारीगरों की जरूरत पड़ी। कांच के काम के लिए किशनगढ़ से कारीगरों को बुलाया गया, जबकि रंग–रोगन भी यहां के कारीगरों ने किया। मार्बल का काम करने के लिए सिराेही के सोमपुरा आए। बाद में मंदिर में सोने की नक्काशी भी कराई गई
जहाज मंदिर जैन तीर्थ राजस्थान के जालोर जिले से लगभग 20 किलोमीटर की दुरी पर माण्डवला में है । यह मंदिर जहाजनुमा आकृति में बना हुआ है । इस मंदिर के अन्दर पूरा सजावट का कार्य काँच के टुकड़ो से किया गया है । अन्दर से देखने पर यह मंदिर बड़ा ही अदभुत लगता है । यहां पर भी यात्रियों के लिए भोजन की और ठहरने की सुविधा है । जैन स्थान होने से रात्रि भोज निषेध है ।
इस जहाज मंदिर का निर्माण 1993 में हुआ है और अधिक जानकारी के लिए आप इनकी website देख सकते है । यहां पर आपको बहुत सी जानकारी मिल जाएगी ।
मंदिर के बारे में अधिक जानकारी के लिए इसे पढ़ सकते है –
सोने की प्याऊ – पानी की तृष्णा को शान्त करने के लिए, शीतल पानी की प्याऊ ।
मंदिर के अन्दर के कुछ दृश्य आपके लिए । ये वही चित्र है, जो वहां खीचने की आज्ञा है ।