मलिक शाह मस्जिद – Malik Shah Mosque In jalore Hindi

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मलिक शाह मस्जिद जालौर किले के प्रमुख स्थलों में से एक है, जिसका निर्माण अला-उद-दीन-खिलजी के शासन द्वारा करवाया गया था। इस मस्जिद को बगदाद के सेलजुक सुल्तान मलिक शाह को सम्मानित करने के लिए किया गया था। मलिक शाह मस्जिद को अपनी वास्तुकला के लिए जाना जाता है, जो गुजरात में पाए गए भवनों से प्रेरित है।

सिरे मंदिर

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सिरे मंदिर जालौर के प्रमुख मंदिरों में से एक है। आपको बता दें कि यह मंदिर जालौर मर कलशचल पहाड़ी पर 646 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण महर्षि जाबालि के सम्मान में रावल रतन सिंह ने करवाया था। पौराणिक कथाओं अनुसार कहा जाता है कि पांडवों ने एक बार मंदिर में शरण ली थी। इस मंदिर तक जाने के लिए पर्यटकों को जालौर शहर से होकर गुजरना होगा और मंदिर तक पहुंचने के लिए 3 किलोमीटर की पैदल यात्रा भी करनी होती है। जालौर की यात्रा दौरान सभी पर्यटकों को सिरे मंदिर के दर्शन के लिए जरुर जाना चाहिए।

सिरे मंदिर – जालोर

जालोर नगर के मध्य स्थित कनकाचल पहाड़ी पर स्थित स्वर्णगिरी दुर्ग के पास ही दक्षिण पश्चिम दिशा में एक और पहाड़ी है जिसे  कन्याचल अथवा कन्यागिरी कहते है जिसकी उंचाई २००० फीट है उस पर सिरे मंदिर बना हुवा है|सिरे मंदिर नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्द संत योगी जालंधर नाथजी की तपोभूमि है| कहते है की यहाँ स्थित भंवर गुफा में जालंधरनाथ जी ने तपस्या की थी और तात्कालीन जालोर के परमार शासक रत्न सिंह को अपने योगिक तपोबल से चमत्कार दिखाए थे और राजा रत्नसिंह को आसमान में विचरण करवाया था जिससे अभिभूत होकर राजा रत्नसिंह ने जालंधरनाथ जी को अपना गुरु माना और जालंधरनाथ जी की गुफा के सामने विक्रम संवत १७०८ अथवा 1651 इसवी में एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था| इस मंदिर को रत्नेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है|

इसवी 1803 में तत्कालीन मारवाड़ (जोधपुर) की राजगद्दी पर आसीन भीम सिंह ने अपने सभी संभावित राजगद्दी के उत्तराधिकारियो की हत्या करवाने के प्रयास में अपने छोटे भाई मानसिंह की भी हत्या करने का प्रयास किया तब मान सिंह जी ने वहा से भाग कर जालोर दुर्ग में ही शरण ली तब भीम सिंह जी ने एक विशाल सेना जालोर दुर्ग पर आक्रमण करने और मानसिंह को कैद करने के लिए भेजी किन्तु अनेक वर्षो तक जोधपुर की सेना जालोर दुर्ग का घेरा डाले बैठी रही मगर दुर्ग को भेद नहीं पायी और आखिरकार जब १८०३ इसवी में दुर्ग में रसद सामग्री समाप्त होने पर मानसिंह जी ने हताश होकर जोधपुर की सेना के सेनापति सिंघवी इन्द्रराज से समझोते की बात चलाई और दिवाली तक दुर्ग खाली करने का निश्चय किया तो दुर्ग की पास वाली पहाड़ी पर तपस्या करने वाले नाथ सम्प्रदाय के योगी गुरु अयास देवनाथ ने मानसिंह जी को गुप्त सन्देश भिजवाया की उन्हें परम योगी जालंधर नाथ जी ने स्वप्न में कहा है की यदि वो (मानसिंह) कार्तिक सुदी ६ तक और प्रतिरोध कर ले और दुर्ग खाली नहीं करेंगे तो जोधपुर के शासक बन जायेंगे| मान सिंह जी ने योगी की सलाह मान कर कुछ दिन और प्रतिरोध किया और इस दरमियान कार्तिक सुदी ४ ,19 अक्टूबर १८०३ को   जोधपुर के शासक भीम सिंह जी की म्रत्यु हो गई और जालोर दुर्ग के बाहर घेरा डालने वाली जोधपुर की सेना के सेनापति इंदरचंद सिंघवी स्वयं मानसिंह जी को धूमधाम से जोधपुर ले गए और उनका राजतिलक किया गया|

सिरे मंदिर जालौर
सिरे मंदिर जालौर

 

मानसिंह जी ने जोधपुर का शासक बनने के बाद नाथ सम्प्रदाय के गुरु अयास देवनाथ के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करने के लिए जोधपुर में महामंदिर और जालोर के कन्याचल पर्वत स्थित नाथ साम्प्रादाय के रत्नेश्वर मंदिर और आश्रम का जीर्णोद्धार करवाया था और मानसिंह जी ने जालोर दुर्ग में महल का तथा अनेक अन्य निर्माण कार्य करवाए थे|

सिरे मंदिर में वर्तमान में पक्की सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है| मंदिर की चढ़ाई के प्रारम्भ में एक विशाल प्रवेश द्वार का निर्माण किया गया है और उधान का निर्माण किया गया है| तथा मध्य में कुछ समय पूर्व ही देवलोक हुवे सिद्ध शांतिनाथ जी महाराज की आदमकद प्रतिमा बनी हुई है|जालोर वासियों में शान्तिनाथ जी के प्रति अगाध श्रद्धा है|शान्ति नाथ जी के प्रयासों से ही सिरे मंदिर का कायाकल्प हुवा है|

सिरे मंदिर के चारो तरफ एक परकोटा बना हुवा है|परकोटे की सभी दिशाओं में द्वार बने हुवे है| अन्दर जाने पर एक कुंड अथवा बावड़ी बनी हुई है जिसके जल को चमत्कारी माना जाता है| बावड़ी से आगे जाने पर एक विशाल हाथी की प्रतिमा बनी हुई है जिस पर दोनों तरफ हाथी का मुख निर्मित है और हाथी पर एक पालकी बनी हुई है जिसमे नाथ योगी विराजमान है|

भंवर गुँफा जिसमे जालंधरनाथ जी ने तपस्या की थी को श्रधालुओ ने पूरी संगमरमर की बना दी है | गुफा के गर्भ मंदिर के बाहर संगमरमर का मंडप बना हुवा है जिसके चारो तरफ कलात्मक स्तम्भ बने हुवे है जिन पर नाथ योगियों की मुर्तिया बनी हुई है | प्रवेश हेतु तोरणद्वार बना हुवा है|गुम्बद के अन्दर की कारीगिर भी देखने लायक है गुफा के अन्दर चारो तरफ नाथ योगियों से सम्बंधित चित्रकारी की गई है चित्रकारी में सोने का काम किया हुवा है|

भंवर गुफा के सामने एक चबूतरा बना हुवा है जिस पर दो तरफ ऊँची चौकिया बनी हुई है जिन पर नाथ योगियों की प्रतिमाए विराजित है जिसमे मुख्यत सुआनाथजी ,भवानीनाथजी भैरूनाथजी ,हंसानाथजी , फुलनाथजी, सेवानाथजी, पूणनानाथजी ,केसरानाथजी एवं भोलानाथ जी की समाधिया है|मंदिर में एक झालरा भी बना हुवा है जिसके बाहर भी कुछ समाधिया बनी हुई है| मंदिर परिसर में मारवाड़ के शासक मानसिंह जी द्वारा निर्मित मर्दाना और जनाना महल भी है| रत्नेश्वर मंदिर के सामने ही के प्राचीन कूप है और थोडा आगे एक शिलालेख लगा हुवा है जिसके नीचे चरण युगल बने हुवे है|

सिरे मंदिर के एक भाग में विशाल भूमि पौधशाला के रूप में भी विकसित की गई है जिसके ऊपर लोहे की जाली लगाईं गई है संभवत कुछ विशेष प्रकार की प्रजातियों के पौधों के विकास हेतु विकसित किया गया है|इसके अलावा मंदिर परिसर में एक अखंड धुणा है और एक अमृत वाचिका भी है| आने वाले यात्रियों और श्रधालुओ के लिए रसोईघर और विश्रामालय बने हुवे है|

जालौर वन्यजीव अभयारण्य – Jalore Wildlife Sanctuary In Hindi

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जालौर वन्यजीव अभयारण्य भारत में एकमात्र प्राइवेट अभयारण्य है जो जालौर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह अभयारण्य जालौर शहर के पास जोधपुर से 130 किमी दूर स्थित है। जालौर वन्यजीव अभयारण्य एक दूरस्थ प्राकृतिक जंगल है जो 190 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला है। इस अभयारण्य में पर्यटक कई तरह के लुप्तप्राय जंगली जानवरों को देख सकते हैं। यहां पाए जाने वाले जानवरों में रेगिस्तानी लोमड़ी, तेंदुआ, एशियाई-स्टेपी वाइल्डकाट, तौनी ईगल के नाम शामिल हैं। इसके अलावा यहां पर नीले बैल, मृग और हिरणों के झुंड को जंगल में देखा जा कसता है।

जालौर वन्यजीव अभयारण्य में आप पैदल यात्रा कर सकते हैं या जीप सफारी की मदद से जंगल को एक्सप्लोर कर सकते हैं। वन अधिकारी प्रतिदिन दो सफारी संचालित करते हैं जो तीन घंटों की होती है। बर्ड वॉचर्स के लिए यह जगह बेहद खास है क्योंकि यहां पर पक्षियों की 200 विभिन्न प्रजातियों को देखा जा सकता है। अगर आप एक प्रकृति प्रेमी हैं तो जालौर वन्यजीव अभयारण्य की सैर अवश्य

नीलकंठ महादेव मंदिर

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नीलकंठ महादेव मंदिर जालोर का स्थान:

यह मंदिर जालौर, पाली और बाड़मेर जिलों की सीमा पर उप-तहसील भाद्राजुन, जिला जालौर, राजस्थान के ग्राम नीलकंठ में स्थित है।

नीलकंठ महादेव मंदिर जालौर का इतिहास:

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। कहा जाता है कि एक विधवा महिला ने यहां एक शिवलिंग देखा और वह नियमित रूप से उसकी पूजा करने लगी। उसके परिवार वालों ने उसे दफ़नाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह रेत के साथ-साथ बार-बार धरती से बाहर निकल आया और इस तरह विशाल टीला बन गया। मूर्ति को चमत्कारी समझकर यहां मंदिर बनाया गया।

ऐसा कहा जाता है कि सुल्तान अला-उद-दीन खिलजी की सेना ने जालोर पर हमला किया और शिव लिंगम को नष्ट करने की कोशिश की। लेकिन काली मधुमक्खियों ने उन पर हमला कर दिया और सैनिक भाग खड़े हुए। तब सुल्तान ने भगवान शिव से दया की प्रार्थना की और उस स्थान पर एक भव्य मंदिर बनाने का वादा किया। उनकी प्रार्थना सुनी गई और उन्होंने मंदिर का निर्माण करके अपना वादा निभाया।

नीलकंठ महादेव मंदिर जालोर की वास्तुकला:

यह एक ऊंचे टीले पर बना पश्चिममुखी मस्जिद-संरचित मंदिर है। शिवलिंग की आधी मूर्ति काले रंग की है और दूसरी आधी पीले रंग की है जिससे पता चलता है कि इसे टुकड़ों में तोड़ने की कोशिश की गई थी। मंदिर में देवी-देवताओं की कई टूटी हुई मूर्तियाँ और स्तंभ और पत्थर के शिलालेख हैं जो यह दर्शाते हैं कि इसकी कई बार मरम्मत की गई थी। 1796 ई. के एक पत्थर के शिलालेख में जोधा रतन सिंह के बारे में उल्लेख है।

नीलकंठ महादेव मंदिर जालौर जिले की भाद्राजून तहसील में स्थित है। जो पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है। गांव में प्रवेश करते समय आप इस मंदिर को देख सकते हैं। नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर अपनी उंची संरचना से यहां आने वाले पर्यटकों को बेहद प्रभावित करता है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां एक विधवा महिला ने एक शिवलिंग देखा था और इसके बाद वो नियमित रूप से इस शिवलिंग की पूजा करने लगी थी।

महिला के मजबूत विश्वास के परिवार के लोगों के इस शिवलिंग को कई बार दफ़नाने की कोशिश की, लेकिन यह शिवलिंग बाहर निकल जाता। इस तरह वहां पर रेत का एक विशाल टीला उभर आया। शिवलिंग के इस चमत्कार को देखकर मंदिर की स्थापना की गई थी। यह मंदिर बहुत पुराना है और इस मंदिर में बारिश के मौसम और शिवरात्रि के दौरान भक्तों की काफी भीड़ आती है। अगर आप जालौर की यात्रा शिवरात्रि के समय कर रहें हैं तो मंदिर में दर्शन के जरुर जाएं।

जहाज मंदिर

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जहाज मंदिर का निर्माण कराने के पीछे यह रही साेच : मुंबई में चातुर्मास के दौरान उन्होंने तारण-तीरण जहाज का प्रसंग सुना।

यानी, जहाज सबको तार कर पानी से बाहर लाता है। तभी उनके मन में जहाज के आकार का मंदिर बनाने का विचार आया

जिनकांति सूरी सागर मसा की स्मृति में उनके शिष्य मणिप्रभ सागर मसा ने बनवाया मांडवला का यह जैन मंदिर

5 साल 8 माह में बना मांडवला का जहाज मंदिर, गुरुशिष्य के रिश्ते का है साक्षी


ये है जालोर से करीब 18 किलोमीटर दूर मांडवला स्थित जैन समाज का जहाज मंदिर। इसकी खासियत यह है कि देश का यह इकलौता मंदिर है जो जहाज की अाकृति में बना है। संगमरमर के जहाज में बने इस मंदिर को कांच, हीरापन्ना, मोती और सोने से बनाया गया है। इसीलिए इसकी भव्यता देखते ही बनती है। देश ही नहीं, विदेश से भी पर्यटक इसके दर्शनार्थ आते हैं। इस मंदिर की स्थापना के पीछे की कहानी भी गुरुशिष्य के रिश्ते की महत्वता को दर्शाती है। मंदिर की देखरेख के लिए जिनकांति सागर सूरीश्वर महाराज स्मारक ट्रस्ट है। जिनकांति सूरी सागर का देहावसान 4 दिसंबर 1985 को हुआ था। उनके शिष्य मणिप्रभ सागर मसा उनकी स्मृति में स्मारक बनवाना चाहते थे। मुंबई में चातुर्मास के दौरान उन्होंने तारणतीरण जहाज सुना। जैसे जहाज सबको तार कर पानी से बाहर लाता है। ऐसे ही जहाज के आकार का मंदिर बनाने का विचार आया और 9 मई 1993 को मांडवला में मंदिर का शिलान्यास किया। 30 जनवरी 1999 को जहाज के आकार में मंदिर बन गया। ट्रस्ट के महामंत्री डॉ.यूसी जैन ने बताया कि यहां 24 तीर्थंकर का | मदिर है। |ों से जैन धर्म के सभी तीर्थंकरों की प्रतिमाएंं बनवाई गई है, जो हीरापन्ना, मोती, जवाहरात, माणक आदि से बनी हैं।

जालोर. शहर से 18 किमी. दूर मांडवला कस्बे में बना जहाज मंदिर।

नक्काशी के लिए सिराेही के साेमपुरा, तो कांच की कलाकारी के लिए किशनगढ़ से कारीगर आए
ट्रस्ट के प्रबंधक नरेश जैन बताया कि मुंबई से ही नक्शे के लिए इंजीनियर आए। इसके बाद निर्माण के लिए कुशल कारीगरों की जरूरत पड़ी। कांच के काम के लिए किशनगढ़ से कारीगरों को बुलाया गया, जबकि रंगरोगन भी यहां के कारीगरों ने किया। मार्बल का काम करने के लिए सिराेही के सोमपुरा आए। बाद में मंदिर में सोने की नक्काशी भी कराई गई

जहाज मंदिर जैन तीर्थ राजस्थान के जालोर जिले से लगभग 20 किलोमीटर की दुरी पर माण्डवला में है । यह मंदिर जहाजनुमा आकृति में बना हुआ है । इस मंदिर के अन्दर पूरा सजावट का कार्य काँच के टुकड़ो से किया गया है । अन्दर से देखने पर यह मंदिर बड़ा ही अदभुत लगता है । यहां पर भी यात्रियों के लिए भोजन की और ठहरने की सुविधा है । जैन स्थान होने से रात्रि भोज निषेध है ।

इस जहाज मंदिर का निर्माण 1993 में हुआ है और अधिक जानकारी के लिए आप इनकी website देख सकते है । यहां पर आपको बहुत सी जानकारी मिल जाएगी ।

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जहाज मंदिर

मंदिर के बारे में अधिक जानकारी के लिए इसे पढ़ सकते है –

जहाज मंदिर
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सोने की प्याऊपानी की तृष्णा को शान्त करने के लिए, शीतल पानी की प्याऊ

जहाज मंदिर

मंदिर के अन्दर के कुछ दृश्य आपके लिए । ये वही चित्र है, जो वहां खीचने की आज्ञा है ।

सुभद्रा माता

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  • भाद्राजून. जिले के भाद्राजून गांव के निवट धुम्बड़ा पर्वत स्थित महाभारतकालीन सुभद्रा माता का ऐतिहासिक
    मंदिर जनजन की आस्था का केंद्र है। यह स्थान देवी सुभद्रा अर्जुन के गंर्धव विवाह की पवित्र स्थली माना
    जाता है। किंवदंतियों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की सहमति से अर्जुन ने सुभद्रा का द्वारिका से हरण कर
    उनके द्वारा बताए गए इसी रमणीय स्थल पर गंर्धव विवाह सम्पन किया था। यह स्थान महाभारतकाल में
    द्वारिकाहस्तिनापुर मुख्य मार्ग पर स्थित था। कहा जाता है कि बलदेवजी का दैवीय हल किसी को भी 500
    योजन की दूरी तक पकड़ लेता था। ऐसे में इस स्थान की दूरी द्वारिका से 500 योजन से अधिक होने के कारण
    श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस स्थान पर ही रुकने को कहा था। उस समय यह पर्वत अनेक ऋषिमुनियों की
    तपोस्थलि हुआ करता था। तपस्वियों की उपस्थिति के बीच सुभद्रा अर्जुन का गंर्धव विवाह निकट के गांव के
    पुरोहित ने सम्पन करवाया था। विवाह उपरांत दक्षिणा रूप में अर्जुन ने पुरोहित को अपना शंख भेंट किया और
    देवी सुभद्रा ने नाक की बाली भेंट स्वरूप दी थी। कालांतर में जिस स्थान पर पुरोहित रहते थे, उस स्थान का
    नाम शंख बाली से शंखवाली पड़ा। वहीं धुम्बड़ा पर्वत स्थित जहां विवाह सम्पन हुआ उस स्थान का नाम
    सुभद्राअर्जुनपुरी पड़ा जो अपभ्रंश होतेहोते वर्तमान में भाद्राजून के नाम से जाना जाता है।

·        पूर्ण होती है मनोकामना

  • जिले के इस ऐतिहासिक स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण (विष्णु) देवी सुभद्रा का भव्य मंदिर बना हुआ है। वर्तमान
    में राजभारती महाराज यहां के महंत हैं। आवागमन के लिए भाद्राजून से धुम्बड़ा माता मंदिर तक डामर सड़क
    मार्ग रामा गांव से धुम्बड़ा माता मंदिर के लिए सड़क बनी हुई है। यहां राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश
    महाराष्ट्र समेत दूरदूर से आम दिनों में भी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। चैत्र नवरात्र शारदीय नवरात्र में
    यहां मेला लगा रहता है। माता के दरबार में आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है।

·        धुम्बडगढ़ बाबा के नाम से पड़ा धुम्बड़ा

  • किंवद॑ती के अनुसार बाबा धुम्बगड़ नाम के व्यक्ति देवी के अनन्य भक्त थे। प्राचीनकाल में पाकअफगान सीमा
    पर स्थित हिंगलाज माता शक्तिपीठ में कुम्भ का मेला लगता था। जहां दर्शन के लिए तपस्वी छह माह पूर्व
    अपनेअपने स्थान से रवाना होते थे। धुम्बडग़ड़ बाबा भी कुम्भ मेले में दर्शन के लिए पैदल रवाना हुए। कहा
    जाता है सुभद्रामाता मंदिर स्थित शीतलामाता घाटी में देवी ने वृद्धा का रूप धारण कर बाबा धुम्बडग़ढ़ को
    हिंगलाज दर्शन के लिए ले जाने की प्रार्थना की तो वे सहर्ष मान गए और माता को कंधों पर बिठाकर हिंगलाज
    कुंभ दर्शन के लिए निकल पड़े। दैवीय चमत्कार से बाबा धुम्बडग़ढ़ को थोड़ी ही देर बाद नींद गई और जब
    आंख खुली तो खुद को कुंभ हिंगलाज में पाया। देवी कृपा से बाबा को शक्ति स्वरूपा के दर्शन हुए और वरदान
    भी प्राप्त हुआ कि आज से उनके नाम से माता का स्थान प्रसिद्ध होगा। तब से इसे धुम्बड़ा पर्वत कहा जाने
    लगा।

तोपखाना

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तोपखाना जालौर शहर के मध्य में स्थित है जो पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र भी है। यह तोपखाना कभी एक भव्य संस्कृत विद्यालय था जिसे राजा भोज ने 7 वीं और 8 वीं शताब्दी के बीच बनवाया था। राजा भोज एक बहुत बड़े संस्कृत के एक विद्वान थे और उन्होंने शिक्षा प्रदान करने के लिए अजमेर और धार में कई समान स्कूल बनाए हैं। देश के स्वतंत्र होने से पहले जब अधिकारियों इस स्कूल का इतेमाल गोला-बारूद के भंडारण के उपयोग किया था तो इसका नाम तोपखाना रख दिया गया था। आज भले ही इस स्कूल की इमारत काफी अस्त-व्यस्त हो चुकी है लेकिन इसके बाद भी यह आज भी काफी प्रभावशाली है।

तोपखाना की पत्थर की नक्काशी पर्यटकों को बेहद आकर्षित करती हैं। यहां इसके दोनों तरफ दो मंदिर भी स्थित हैं लेकिन इन मंदिरों में कोई मूर्ति नहीं है। टोपेखाना की सबसे संरचना जमीन से 10 फ़ीट ऊपर बना एक कमरा है जहां जाने के लिए सीढ़ी लगाईं गई है। इस कमरे के बारे में ऐसा माना जाता है कि यह स्कूल के प्रधानाध्यापक का निवास स्थान था। अगर कोई भी पर्यटक जालौर की यात्रा करने जा रहा है तो उसको इस ऐतिहासिक स्थल की यात्रा जरुर करनी चाहिए।

सुंधामाता

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सिर सुंधे धर कोरटे, पग सुंदरला पाल।

    आचामुण्डा इसरी, गले फुलाँ री माल।। 

इसका अर्थ है माँ का सिर सुंधा पर, धड़ कोरटे तथा पग सुंदरला में पूजे जाते हैं।

जालोर जिले के जसवंतपुरा उपखंड क्षेत्र के सुंधा पर्वत पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से भी कम महत्व नहीं है। त्रिपुर राक्षस का वध करने के लिए आदि देव की तपोभूमि यहीं मानी जाती है। इसके अलावा चामुंडा माता की मूर्ति के पास एक शिवलिंग स्थापित है और वैदिक कर्मकांड को मानने वाले श्रीमाली ब्राह्मण समाज के उपमन्यु गौत्र के यह कुलदेवता हैं तथा यही नागिनी माता स्थित है, जो इनकी कुलदेवी हैं। यह स्थान अनेक ऋषिमुनियों की तपोभूमि रही हैं तथा यही पर भारद्वाज ऋषि का आश्रम भी बताया जाता है। वर्ष 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मेवाड़ शासक इतिहास पुरुष महाराणा प्रताप ने अपने कष्ट के दिनों में सुंधा माता की शरण ली थी। 13वीं सदी के शुरुआती सालों में ही भीनमाल गुजरात के सोलंकियों से जालौर के चौहान शासक उदयसिंह ने छीन लिया जालौर के चौहान शासकों का सुंधा माता के प्रति विशेष आदर भाव रहा है।

इसी श्रद्धा के कारण उदयसिंह के पुत्र चाचिगदेव ने इस मंदिर का निर्माण संवत 1312 में करवाया तथा 1319 में अक्षय तृतीया के दिन विधि विधान से माँ चामुंडा की प्रतिष्ठा करवाई गई। तेरहवीं सदी में ही अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर पर आक्रमण कर चौहान शाखा का अंत किया और यह क्षेत्र मुगलों, बिहारी पठानों एवं गुजरात के सुल्तानों के अधीन रहा। मारवाड़ रियासत का अंग बनने के बाद जोधपुर राजपरिवार ने श्रद्धा भाव से इस तीर्थ को सुंधा की ढाणी, मंगलवा एवं चितरोड़ी गाँव भेंट किए।

प्रभाव श्रद्धालु 

सुंधा माता के देश के कई राज्यों में भक्तगण हैं। जिसमें राजस्थान के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश से प्रतिवर्ष लाखों लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं। साल में दो बार नवरात्रों के समय यहां नौ दिन मेले का आयोजन होता हैं। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुट जाती है। हर माह के शुक्ल पक्ष की तेरस से पूर्णिमा तक मंदिर में अधिक दर्शानार्थी आते हैं। वहीं जालोर जिले का प्रथम रोपवे भी सुंधा माता पर स्थित हैं।

सुंधा माता मंदिर के दर्शन और इसके पर्यटन स्थल की जानकारी – Sundha Mata Temple Information In Hindi

Sundha Mata Temple In Hindi, सुंधा माता मंदिर राजस्थान के जालौर जिले में स्थित सुंधा नाम की एक पहाड़ी पर स्थित चामुंडा देवी को समर्पित एक 900 साल पुराना मंदिर है। आपको बता दें कि यह मंदिर राजस्थान के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू से 64 किमी और भीनमाल महानगर से 20 किमी दूर है। अरावली की पहाड़ियों में 1220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चामुंडा देवी का यह मंदिर भक्तों के लिए एक पवित्र धार्मिक स्थल है। गुजरात और राजस्थान के बहुत से पर्यटक इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर के पास का वातावरण बेहद ताजा और आकर्षक है। यहां पर साल भर झरने बहते हैं। जैसलमेर के पीले बलुआ पत्थर से निर्मित यह मंदिर हर किसी को अपनी खूबसूरती से आकर्षित करता है।

आपको बता दें कि इस मंदिर के अंदर तीन ऐतिहासिक शिलालेख हैं जो इस जगह के इतिहास के बारे में बताते हैं। यहां का पहला शिलालेख 1262 ईस्वी का है जो चौहानों की जीत और परमार के पतन का वर्णन करता है। दूसरा शिलालेख 1326 और तीसरा 1727 का है। अगर आप जालौर जिले में स्थित सुंधा माता मंदिर के इतिहास या जाने के बारे में अन्य जानकारी चाहते हैं तो इस लेख को जरूर पढ़ें, यहां हम आपको सुंधा माता मंदिर के बारे में पूरी जानकारी देने जा रहें हैं।

सुंधा माता मंदिर का इतिहास – Sundha Mata History In Hindi

प्राचीन दिनों में इस मंदिर में पूजा नाथ योगी द्वारा की जाती थी। सिरोही जिले के सम्राट ने “सोनाणी”, “डेडोल” और “सुंधा की ढाणी” गाँवों में से एक नाथ योगी रबा नाथ जी को दी थी, जो उस समय सुंधा माता मंदिर में पूजा करते थे। नाथ योगी में से एक अजय नाथ जी में मृत्यु के बाद मंदिर में पूजा करने के लिए कोई नहीं था, इसलिए इसलिए राम नाथ जी (मेंगलवा के अयस) को जिम्मेदारी लेने के लिए वहां पर भेजा गया था। मेंगलवा और चितरोडी गाँवों की भूमि, नाथ योगी को जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह द्वारा दी गई थी। इसलिए मेंगलवा के नाथ योगी को “अयस” कहा जाता था।

आपको बता दें कि राम नाथ जी की मृत्यु के बाद उनके शिष्य बद्री नाथ जी सुंधा माता मंदिर में अयस बने और पूजा की जिम्मेदारी ली। इसके अलावा उन्होंने “सोनानी”, “डेडोल”, “मेंगलवा” और “चितरोडी” की भूमि की भी देखभाल की। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, वहां पर सभी प्रबंध करने के लिए कोई नहीं था, इसलिए मंदिर की देखभाल और पर्यटन का प्रबंधन करने के लिए एक ट्रस्ट (सुंधा माता ट्रस्ट) बनाया गया।

 सुंधा माता मंदिर जालोर में मेले का आयोजन – Sundha Mata Temple Jalore Fairs In Hindi

नवरात्रि के समय यहां पर मेले के आयोजन किया जाता है जिस दौरान गुजरात और आसपास के क्षेत्रों से पर्यटक बड़ी संख्या में सुंधा माता की यात्रा करते हैं। बता दें कि इस समय गुजरात द्वारा पालनपुर, डीसा और अन्य जगहों से नियमित बसें चलाई जाती हैं।

 सुंधा माता मंदिर खुलने और बंद होने का समय – Sundha Mata Temple Timings In Hindi

सुंधा मंदिर खुलने का समय हर दिन सुबह 8 बजे है और बंद होने का समय शाम 6 बजे है।

 सुंधा माता मंदिर उड़न खटोले की जानकारी – Sundha Mata Mandir Ropeway In Hindi

सुंधा माता मंदिर के दर्शन करने के लिए आप पैदल भी जा सकते है नही तो आप रोपवे की सर्विस भी ले सकते है । यह रोपवे 800 मीटर लम्बा है और खरीब 6 मिनट में आप को पहाड़ी पर बने मंदिर तक ले जायेगा, एक समय में एक ट्राली में 4 ही लोग जा सकते है। उड़न खटोले के टिकेट की कीमत 50रु है जिस में आने और जाने की सुविधा उपलब्द करायी जाती है ।

सुंधा माता मंदिर घूमने जाने का सबसे अच्छा समय – Best Time To Visit Sundha Mata Temple In Hindi

जो भी पर्यटक सुंधा माता मंदिर जाने की योजना बना रहें हैं। उनके लिए बता दें कि इस मंदिर के लिए यात्रा करने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक होता है। सर्दियों का मौसम इस क्षेत्र की यात्रा करने के लिए अनुकूल समय है। रेगिस्तानी क्षेत्र होने की वजह से राजस्थान गर्मियों में बेहद गर्म होता है जिसकी वजह से इस मौसम में यात्रा करने से बचना चाहिए। बारिश के मौसम में यहां की यात्रा करना सही नहीं है क्योंकि ज्यादा बारिश आपकी यात्रा का मजा किरकिरा कर सकती है। इसलिए सर्दियों के मौसम में ही आप इस मंदिर की यात्रा करें।

सुंधा माता मंदिर कैसे जाये – How To Reach Sundha Mata Temple In Hindi

सुंधा मंदिर के लिए कोई भी भारत के प्रमुख शहरों से परिवहन के विभिन्न साधनों से यात्रा कर सकते हैं। आपको बता दें कि सुंधा माता मंदिर जाने के लिए जालौर का निकटतम हवाई अड्डा 140 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जोधपुर में हैं। यह हवाई अड्डा मुंबई, दिल्ली और देश के अन्य प्रमुख महानगरों अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा पर्यटक सड़क मार्ग द्वारा सुंधा माता मंदिर की यात्रा करने वाले पर्यटक पर्यटक जोधपुर, जयपुर, अजमेर, अहमदाबाद, सूरत और मुंबई जैसे शहरों से आसानी से इस पर्यटन शहर तक पहुँच सकते हैं। ट्रेन द्वारा सुंधा माता मंदिर की यात्रा करने वाले पर्यटक जालौर रेलवे स्टेशन के लिए जोधपुर डिवीजन नेटवर्क, मुंबई और गुजरात से ट्रेन ले सकते हैं।

रेल द्वारा सुंधा माता मंदिर कैसे पहुंचें – How To Reach Sundha Mata Temple By Train In Hindi

सुंधा माता मंदिर की यात्रा ट्रेन द्वारा करने वाले पर्यटकों के लिए बता दें कि जालोर रेलवे स्टेशन उत्तर पश्चिम रेलवे लाइन पर पड़ता है। समदड़ी-भिलडी शाखा लाइन जालौर और भीनमाल शहरों को जोड़ती है। इस जिले में 15 रेलवे स्टेशन हैं। देश के अन्य प्रमुख शहरों से जालौर के प्रतिदिन कई ट्रेन उपलब्ध हैं।

 सुंधा माता मंदिर सड़क मार्ग से कैसे पहुंचें – How To Reach Sundha Mata Temple By Road In Hindi

अगर आप सड़क मार्ग सुंधा माता मंदिर जाना चाहते हैं तो बता दें कि राजमार्ग संख्या 15 (भटिंडा-कांडला राजमार्ग) इस जिले से गुजरता है। यहां के लिए अन्य शहरों से कोई बस मार्ग उपलब्ध नहीं हैं। जालौर का निकटतम बस डिपो भीनमाल में है जो लगभग 54 किमी दूर है

 कैसे पहुंचें सुंधा माता मंदिर हवाई मार्ग द्वारा – How To Reach Sundha Mata Temple By Air In Hindi

सुंधा माता मंदिर जाने के लिए जालौर का निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा (JDH), जोधपुर है। यह हवाई अड्डा शहर से 137 किलोमीटर दूर है और इसके अलवा उदयपुर में डबोक हवाई अड्डा लगभग 142 किमी दूर है।