भाद्राजून. जिले के भाद्राजून गांव के निवट धुम्बड़ा पर्वत स्थित महाभारतकालीन सुभद्रा माता का ऐतिहासिक
मंदिर जन–जन की आस्था का केंद्र है। यह स्थान देवी सुभद्रा व अर्जुन के गंर्धव विवाह की पवित्र स्थली माना
जाता है। किंवदंतियों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की सहमति से अर्जुन ने सुभद्रा का द्वारिका से हरण कर
उनके द्वारा बताए गए इसी रमणीय स्थल पर गंर्धव विवाह सम्पन किया था। यह स्थान महाभारतकाल में
द्वारिका–हस्तिनापुर मुख्य मार्ग पर स्थित था। कहा जाता है कि बलदेवजी का दैवीय हल किसी को भी 500
योजन की दूरी तक पकड़ लेता था। ऐसे में इस स्थान की दूरी द्वारिका से 500 योजन से अधिक होने के कारण
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस स्थान पर ही रुकने को कहा था। उस समय यह पर्वत अनेक ऋषि–मुनियों की
तपोस्थलि हुआ करता था। तपस्वियों की उपस्थिति के बीच सुभद्रा व अर्जुन का गंर्धव विवाह निकट के गांव के
पुरोहित ने सम्पन करवाया था। विवाह उपरांत दक्षिणा रूप में अर्जुन ने पुरोहित को अपना शंख भेंट किया और
देवी सुभद्रा ने नाक की बाली भेंट स्वरूप दी थी। कालांतर में जिस स्थान पर पुरोहित रहते थे, उस स्थान का
नाम शंख व बाली से शंखवाली पड़ा। वहीं धुम्बड़ा पर्वत स्थित जहां विवाह सम्पन हुआ उस स्थान का नाम
सुभद्राअर्जुनपुरी पड़ा जो अपभ्रंश होते–होते वर्तमान में भाद्राजून के नाम से जाना जाता है।
· पूर्ण होती है मनोकामना
- जिले के इस ऐतिहासिक स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण (विष्णु) व देवी सुभद्रा का भव्य मंदिर बना हुआ है। वर्तमान
में राजभारती महाराज यहां के महंत हैं। आवागमन के लिए भाद्राजून से धुम्बड़ा माता मंदिर तक डामर सड़क
मार्ग व रामा गांव से धुम्बड़ा माता मंदिर के लिए सड़क बनी हुई है। यहां राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश व
महाराष्ट्र समेत दूर–दूर से आम दिनों में भी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। चैत्र नवरात्र व शारदीय नवरात्र में
यहां मेला लगा रहता है। माता के दरबार में आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है।
· धुम्बडगढ़ बाबा के नाम से पड़ा धुम्बड़ा
- किंवद॑ती के अनुसार बाबा धुम्बगड़ नाम के व्यक्ति देवी के अनन्य भक्त थे। प्राचीनकाल में पाक–अफगान सीमा
पर स्थित हिंगलाज माता शक्तिपीठ में कुम्भ का मेला लगता था। जहां दर्शन के लिए तपस्वी छह माह पूर्व
अपने–अपने स्थान से रवाना होते थे। धुम्बडग़ड़ बाबा भी कुम्भ मेले में दर्शन के लिए पैदल रवाना हुए। कहा
जाता है सुभद्रामाता मंदिर स्थित शीतलामाता घाटी में देवी ने वृद्धा का रूप धारण कर बाबा धुम्बडग़ढ़ को
हिंगलाज दर्शन के लिए ले जाने की प्रार्थना की तो वे सहर्ष मान गए और माता को कंधों पर बिठाकर हिंगलाज
कुंभ दर्शन के लिए निकल पड़े। दैवीय चमत्कार से बाबा धुम्बडग़ढ़ को थोड़ी ही देर बाद नींद आ गई और जब
आंख खुली तो खुद को कुंभ हिंगलाज में पाया। देवी कृपा से बाबा को शक्ति स्वरूपा के दर्शन हुए और वरदान
भी प्राप्त हुआ कि आज से उनके नाम से माता का स्थान प्रसिद्ध होगा। तब से इसे धुम्बड़ा पर्वत कहा जाने
लगा।
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