सिरे मंदिर जालौर के प्रमुख मंदिरों में से एक है। आपको बता दें कि यह मंदिर जालौर मर कलशचल पहाड़ी पर 646 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण महर्षि जाबालि के सम्मान में रावल रतन सिंह ने करवाया था। पौराणिक कथाओं अनुसार कहा जाता है कि पांडवों ने एक बार मंदिर में शरण ली थी। इस मंदिर तक जाने के लिए पर्यटकों को जालौर शहर से होकर गुजरना होगा और मंदिर तक पहुंचने के लिए 3 किलोमीटर की पैदल यात्रा भी करनी होती है। जालौर की यात्रा दौरान सभी पर्यटकों को सिरे मंदिर के दर्शन के लिए जरुर जाना चाहिए।
सिरे मंदिर – जालोर
जालोर नगर के मध्य स्थित कनकाचल पहाड़ी पर स्थित स्वर्णगिरी दुर्ग के पास ही दक्षिण पश्चिम दिशा में एक और पहाड़ी है जिसे कन्याचल अथवा कन्यागिरी कहते है जिसकी उंचाई २००० फीट है उस पर सिरे मंदिर बना हुवा है|सिरे मंदिर नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्द संत योगी जालंधर नाथजी की तपोभूमि है| कहते है की यहाँ स्थित भंवर गुफा में जालंधरनाथ जी ने तपस्या की थी और तात्कालीन जालोर के परमार शासक रत्न सिंह को अपने योगिक तपोबल से चमत्कार दिखाए थे और राजा रत्नसिंह को आसमान में विचरण करवाया था जिससे अभिभूत होकर राजा रत्नसिंह ने जालंधरनाथ जी को अपना गुरु माना और जालंधरनाथ जी की गुफा के सामने विक्रम संवत १७०८ अथवा 1651 इसवी में एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था| इस मंदिर को रत्नेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है|
इसवी 1803 में तत्कालीन मारवाड़ (जोधपुर) की राजगद्दी पर आसीन भीम सिंह ने अपने सभी संभावित राजगद्दी के उत्तराधिकारियो की हत्या करवाने के प्रयास में अपने छोटे भाई मानसिंह की भी हत्या करने का प्रयास किया तब मान सिंह जी ने वहा से भाग कर जालोर दुर्ग में ही शरण ली तब भीम सिंह जी ने एक विशाल सेना जालोर दुर्ग पर आक्रमण करने और मानसिंह को कैद करने के लिए भेजी किन्तु अनेक वर्षो तक जोधपुर की सेना जालोर दुर्ग का घेरा डाले बैठी रही मगर दुर्ग को भेद नहीं पायी और आखिरकार जब १८०३ इसवी में दुर्ग में रसद सामग्री समाप्त होने पर मानसिंह जी ने हताश होकर जोधपुर की सेना के सेनापति सिंघवी इन्द्रराज से समझोते की बात चलाई और दिवाली तक दुर्ग खाली करने का निश्चय किया तो दुर्ग की पास वाली पहाड़ी पर तपस्या करने वाले नाथ सम्प्रदाय के योगी गुरु अयास देवनाथ ने मानसिंह जी को गुप्त सन्देश भिजवाया की उन्हें परम योगी जालंधर नाथ जी ने स्वप्न में कहा है की यदि वो (मानसिंह) कार्तिक सुदी ६ तक और प्रतिरोध कर ले और दुर्ग खाली नहीं करेंगे तो जोधपुर के शासक बन जायेंगे| मान सिंह जी ने योगी की सलाह मान कर कुछ दिन और प्रतिरोध किया और इस दरमियान कार्तिक सुदी ४ ,19 अक्टूबर १८०३ को जोधपुर के शासक भीम सिंह जी की म्रत्यु हो गई और जालोर दुर्ग के बाहर घेरा डालने वाली जोधपुर की सेना के सेनापति इंदरचंद सिंघवी स्वयं मानसिंह जी को धूमधाम से जोधपुर ले गए और उनका राजतिलक किया गया|
मानसिंह जी ने जोधपुर का शासक बनने के बाद नाथ सम्प्रदाय के गुरु अयास देवनाथ के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करने के लिए जोधपुर में महामंदिर और जालोर के कन्याचल पर्वत स्थित नाथ साम्प्रादाय के रत्नेश्वर मंदिर और आश्रम का जीर्णोद्धार करवाया था और मानसिंह जी ने जालोर दुर्ग में महल का तथा अनेक अन्य निर्माण कार्य करवाए थे|
सिरे मंदिर में वर्तमान में पक्की सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है| मंदिर की चढ़ाई के प्रारम्भ में एक विशाल प्रवेश द्वार का निर्माण किया गया है और उधान का निर्माण किया गया है| तथा मध्य में कुछ समय पूर्व ही देवलोक हुवे सिद्ध शांतिनाथ जी महाराज की आदमकद प्रतिमा बनी हुई है|जालोर वासियों में शान्तिनाथ जी के प्रति अगाध श्रद्धा है|शान्ति नाथ जी के प्रयासों से ही सिरे मंदिर का कायाकल्प हुवा है|
सिरे मंदिर के चारो तरफ एक परकोटा बना हुवा है|परकोटे की सभी दिशाओं में द्वार बने हुवे है| अन्दर जाने पर एक कुंड अथवा बावड़ी बनी हुई है जिसके जल को चमत्कारी माना जाता है| बावड़ी से आगे जाने पर एक विशाल हाथी की प्रतिमा बनी हुई है जिस पर दोनों तरफ हाथी का मुख निर्मित है और हाथी पर एक पालकी बनी हुई है जिसमे नाथ योगी विराजमान है|
भंवर गुँफा जिसमे जालंधरनाथ जी ने तपस्या की थी को श्रधालुओ ने पूरी संगमरमर की बना दी है | गुफा के गर्भ मंदिर के बाहर संगमरमर का मंडप बना हुवा है जिसके चारो तरफ कलात्मक स्तम्भ बने हुवे है जिन पर नाथ योगियों की मुर्तिया बनी हुई है | प्रवेश हेतु तोरणद्वार बना हुवा है|गुम्बद के अन्दर की कारीगिर भी देखने लायक है गुफा के अन्दर चारो तरफ नाथ योगियों से सम्बंधित चित्रकारी की गई है चित्रकारी में सोने का काम किया हुवा है|
भंवर गुफा के सामने एक चबूतरा बना हुवा है जिस पर दो तरफ ऊँची चौकिया बनी हुई है जिन पर नाथ योगियों की प्रतिमाए विराजित है जिसमे मुख्यत सुआनाथजी ,भवानीनाथजी भैरूनाथजी ,हंसानाथजी , फुलनाथजी, सेवानाथजी, पूणनानाथजी ,केसरानाथजी एवं भोलानाथ जी की समाधिया है|मंदिर में एक झालरा भी बना हुवा है जिसके बाहर भी कुछ समाधिया बनी हुई है| मंदिर परिसर में मारवाड़ के शासक मानसिंह जी द्वारा निर्मित मर्दाना और जनाना महल भी है| रत्नेश्वर मंदिर के सामने ही के प्राचीन कूप है और थोडा आगे एक शिलालेख लगा हुवा है जिसके नीचे चरण युगल बने हुवे है|
सिरे मंदिर के एक भाग में विशाल भूमि पौधशाला के रूप में भी विकसित की गई है जिसके ऊपर लोहे की जाली लगाईं गई है संभवत कुछ विशेष प्रकार की प्रजातियों के पौधों के विकास हेतु विकसित किया गया है|इसके अलावा मंदिर परिसर में एक अखंड धुणा है और एक अमृत वाचिका भी है| आने वाले यात्रियों और श्रधालुओ के लिए रसोईघर और विश्रामालय बने हुवे है|